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क्यों है मेट्रो और बस में फ्री ट्रैवल की घोषणा एक शानदार घोषणा?

 13 Oct 2020

महिलाओं के लिए फ्री-मेट्रो, फ्री-बस ट्रैवल की घोषणा को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिल रही है। आलोचकों के एक वर्ग का कहना है कि बुजुर्गों के लिए फ्री क्यों नहीं किया। कुछ लोग कहते हैं कि केवल चुनावी स्टंट है। कुछ लोगों का कहना है कि टैक्सपेयर पर अनावश्यक बोझ बढ़ेगा। इन सबके बीच एक तबका ऐसा भी है जो इस कदम की सराहना कर रहा है। हमारे एक यूज़र ने Raise Your Voice सेक्शन में लिखा - 

“दिल्ली की महिलाओं के लिए मेट्रो और बस में फ्री ट्रैवल की घोषणा एक शानदार घोषणा है। इससे पब्लिक प्लेस पर महिलाओं की उपस्थिति बढ़ेगी और कालांतर में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों, ईव-टीजिंग में कमी आएगी। थैंक्स, अरविंद केजरीवाल फॉर दिस।” 

ख़ैर, ये पढ़कर बहुत बेसिक गूगलिंग करने पर पता चला कि हमारे यूज़र ने जो लिखा, आंकड़े उस बात की पुष्टि करते हैं। 

दिल्ली में सार्वजनिक जगहों पर महिलाएँ कम

दिल्ली का लिंगानुपात है 1000 पुरुषों की तुलना में 861 महिलाएँ। 2011-12 में दिल्ली के लेबर फोर्स में महिलाओं की भागीदारी थी - 11.2 फीसदी, राष्ट्रीय स्तर के आँकड़ों से 14 फीसदी कम। मतलब ये है कि सार्वजनिक जगहों पर महिलाएँ बहुत कम हैं। 

तनख़्वाह कैसी है? 

दिल्ली में पुरुषों की औसत तनख़्वाह है 265 रुपये प्रतिदिन। महिलाओं की औसत तनख़्वाह है 98 रुपये प्रतिदिन। दिल्ली सरकार का एक पुराना सर्वे है। इसके मुताबिक 2011-12 में 2004-05 के मुकाबले महिला श्रमिकों की संख्या में कमी आई। एक कारण हो सकता है - कार्यस्थल से आने और वहाँ तक जाने के लिए ज्यादा किराया। 

एक रिसर्च है मनीष मदान और महेश के नल्ला की। यह रिसर्च कहती है कि 51 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में केवल 27 प्रतिशत महिलाएँ पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करते हुए सुरक्षित महसूस करती हैं। 

दूरी का प्रभाव

Institute of Transportation & Development Policy in 2017 की एक स्टडी है। यह स्टडी कहती है रोज़गार, शिक्षा या आधारभूत सुविधाओं की दूरी महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है।

अधिक गंतव्यों वाली यात्रा

एक और महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि महिलाएँ अधिकतर छोटी और अधिक गंतव्यों वाली यात्रा करती हैं। जो उनके ट्रैवल को महंगा बनाता है। अधिक गंतव्यों के पीछे पितृसत्तात्माक मानसिकता में घरेलु काम काज की जिम्मेदारी मुख्य रूप से औरतों के कंधे पर होने से है।

उपर बताए गए तीनों चारों सर्वेज़, स्टडीज़ का मतलब ये है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट की आसान उपलब्धता महिलाओं की सामाजिक स्थिति को सुधार सकता है। सामाजिक स्थिति में सुधार, पब्लिक स्पेस में महिलाओं की बढ़ी हुई प्रेजेंस न केवल उन्हें मानसिक तौर पर मजबूत करेगी बल्कि उनके खिलाफ अपराधों में भी कमी आएगी। 

प्रदूषण की समस्या को कम करने में आसानी

इसके अलावा पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा, जिससे प्रदूषण की समस्या को कम करने में आसानी होगी। कुल मिलाकर घोषणा देश की ज़रूरतों के लिहाज से उचित है। लेकिन इसके क्रियान्वयन में कुछ मुश्किलातें आ सकती हैं। 

  1. सबसे पहली दुश्वारी होगी लैंगिक आधार पर यात्रियों की पहचान।
  2. भुगतान के तरीकों की खोज क्योंकि एनडीएमआरसी के नियमों के तहत रियायत नहीं दी जा सकती।
  3. सरकार पर पड़ने वाला वित्तीय बोझ।
  4. किराये में कमी को लेकर पुरुष यात्रियों की उम्मीदों का एड्रेसल। 

बहरहाल, राजनैतिक फाइलों के ढ़ेर से अगर यह घोषणा धरातल पर आ पाई तो महिलाओं को प्रोत्साहन मिलेगा और राजनैतिक गलियों को काम करने और अलग सोचने का एक तरीक़ा।